‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने ना केवल पाकिस्तान की गलतफहमी को दूर किया कि भारत घुसकर लहौर तक हमला कर सकता है बल्कि भारतीय दृष्टिकोण से हमारे आँखों के जाले भी साफ किया है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कौन से देश भारत के साथ खड़े हैँ और कौन से देश हैँ जो पाकिस्तान के भारत पर आतंकवादी हमले को स्वीकृति दे रहे हैँ।
भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दो दिन बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अमेरिका के मजबूत प्रभाव की वजह से पाकिस्तान के लिए 2.4 बिलियन डॉलर के बेलआउट को मंजूरी दे दी, जो डिफॉल्ट के कगार पर खड़े देश को वित्तीय जीवन रेखा प्रदान करता है। बेलआउट का समय बता रहा था, दक्षिण एशिया में आतंकवाद के प्रायोजक को अवार्ड दिया गया है। बेलआउट ने दुनिया को संकेत दिया कि आप जिहादी आतंक का निर्यात कर सकते हैं और फिर भी पश्चिमी संरक्षण का आनंद ले सकते हैं, यदि आप भू-राजनीतिक रूप से उनके लिए उपयोगी हैं। इस घटना के सिर्फ 4 दिन बाद ट्रंप ने सीरिया में अल-कायदा से जुड़े आतंकवादी अबू मोहम्मद अल-जोलेनी से मुलाकात की। यानि जिस शख्स को यूनाइटेड नेशंस और खुद अमेरिका आतंकवादी ठहरा चुका है, ट्रंप ने उससे मुलाकात की, जिससे साफ संदेश मिलता है कि “एक तरफ ट्रंप भारत की कार्रवाई रोक रहे थे, दूसरी तरफ आतंकियों से हाथ मिला रहे थे।”
इतना ही नहीं, अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने 14 मई को तुर्की को AIM-120C-8 एडवांस्ड एयर-टू-एयर मिसाइलों की बिक्री को मंजूरी देने का ऐलान किया है। जिसकी अनुमानित लागत करीब 225 मिलियन डॉलर है और इसके तहत 53 AMRAAM मिसाइलें और 6 गाइडेंस सेक्शन शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की अपने एफ-16 फाइटर जेट्स को अपग्रेड कर रहा है, लिहाजा उसे अब नई मिसाइलों की जरूरत है। तुर्की ने अमेरिका से ही एफ-16 फाइटर जेट खरीदे हैं। एफ-16 में AMRAAM मिसाइल लगाने के बाद इसमें BVR यानि Beyond Visual Range Air Superiority क्षमता आ जाएगी। ट्रंप ने तुर्की को उस वक्त हथियार देने के लिए समझौता किया, जब उसने भारत के खिलाफ पाकिस्तान को ड्रोन दिए थे। लिहाजा अब भारत को सोचना होगा कि अमेरिका पर कितना भरोसा किया जा सकता है?
रूस-युक्रेन् युद्ध में उलझने के कारण आज रूस चीन पर कुछ मामलों में निर्भर हो चुका है लिहाजा रूस चाहकर भी भारत का उस तरह समर्थन नहीं कर रहा है जैसा वह कर सकता है।
ट्रम्प के दुबारा सत्ता में आने के बाद से उनका दुनियाँ में ना कोई देश मित्र है ना कोई शत्रु, ट्रम्प सभी देशों के साथ सिर्फ फायदे का व्यापार चाहते हैँ यही कारण है कि अमरेका कि मौजूदा नीतियाँ किसी देश के हित या अहित के बजाय अमेरिकी हित के लिए हैँ।
आज एक भी ताकतवर देश भारत का उस तरह समर्थन नहीं कर रहे हैं जैसा भारत को उम्मीद थी। ऐसे में भारत की वैश्विक नीति पर सवाल लाजमी है।
(R.S. Raghuvansh.)